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Conservation Journal

"An International Journal Devoted to Conservation of Environment"

(A PEER REVIEWED JOURNAL)

ISSN: 2278-5124 (Online) :: ISSN: 0972-3099 (Print)

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गोरक्षपद्धति में धारणा विवेचन

कुमार विकास, सिंह ऊधम

Abstract

चित्त को किसी स्थान विशेष पर ठहराना या एकाग्र धारण कहलाती है। यह धारण आभ्यंतर और बाह्म दोनों प्रकार से संपन्न की जा सकती है। हृदय कमल में, भूमध्य में ज्योति पर चित को एकाय करना आभ्यंतर धारणा हें तथा सूर्य, चन्द्र पुष्पादि बाह्म धारणा कहलाती है। धारणा के अभ्यास के दृढ होने पर ही चित्त ध्यान की अवस्था में प्रवेश करता है।
गुरु गोरक्षनाथ ने गोरक्षपद्धिति में पांच महाभूतों को धारणा का आधार बनाया है। इन पंचमहाभूतों में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश सम्मिलित हैं। इनकी विधियों का विवेचन इस ग्रन्थ में किया गया है। पंच तत्त्वों की धारण करने से योगी इन तत्त्वों पर विजय प्राप्त कर लेता है।

चित्त, धारणा, पंचमहाभूत

108 उपनिषद् (ज्ञानखण्ड), आचार्य श्रीराम शर्मा, परिशिष्ट पृ. 454.

पा´जल योगदर्शन 2.53, धारणासु च योग्यता मनसः।
पा´जल योगदर्शन 3.1,

देशबन्धश्रिचत्तस्य धारणाः।

ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका (उपासना विषय), स्वामी दयानन्द सरस्वती।

सिद्धसि. प. 2.37, धारणेति सा बाह्माभ्यान्तर एकमेवनिजतत्त्वस्वरूपमेवान्तः करणेन साध्येद् यथा यद्यदुत्पद्यते तत्तान्निराकरो धारयेत् स्वात्मानं निर्वातदीपमेव संधारयेदिति धारणालक्षणम्।।

अमृत. 16 मनः संकल्पकं ध्यात्वा संक्षिप्यात्मनि बुद्धिमान्।
धारयित्वा तथात्मानं धारणा परिकीर्तिता।।

शाण्डिल्योपनिषद् 1.9.1, अथ धारणा। सा त्रिविधा आत्मनि मनोधारणं देहराकाशे बाह्माकाशधारणपृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशेषु प´चमूर्तिधारणं चेति।।

योगतत्त्वोपनिषद् 83, भूमिरापो भूमिरापोऽनलोवायुराकाशÜचेति पत्र्चकः। तेषु पत्र्चसु देवानां धारणा पत्र्चधोच्यते।।

शिवसंहिता 3,72, अस्मिन् काले महायोगी पत्र्चधा धारणां चरेत्। येन भूरादिसिद्धिः स्यात् ततो भूतभयापहा।।

धेरण्डसंहिता 3.63, कथिता शाम्भवीमद्रा म्पुष्व पत्र्चधारणम्। धारणानि समासाद्य किं न सिद्ध्यति भूतले।।, देखें 3.64से3.76तक

गोरक्षपद्धति 2.12, धारणाभिमतो धैर्यम्।।

गोरक्षपद्धति 2.13, प्रत्याहारद्धिषट्केन ज्ञायते धारणा शुभा।

गोरक्षपद्वति 2.52, आसनेन समायुक्तः प्राणायामेन संयुतः।

प्रत्याहारेण सम्पन्नो धारण च समभ्यसेत्।।

गोरक्षपद्धति 2.53, हृदयेन पत्र्चभूतानां धारणा च पृथक्- पृथक्।
मनासो निÜचलत्वेन धारणा साभिधीयते।।

पातत्र्जल योगदर्शन 3.44, स्थूलस्वरूपसूक्ष्मान्वयार्थवत्त्वसंयमाद् भूतजयः। (ख) पातत्र्जल योगदर्शन 3.45, ततोऽणिमादिप्रदुर्भावः कायसम्पत्त्द्धर्मानभिघातः।।

गोरक्षपद्धति 2.54,या पृथिवी हरिताल हेमरुचिरापीतालकारान्विता संयुक्ता कमलासनेन हि चतुष्कोणाहृदिस्थायिनी। प्राणांस्तत्र विलीय पत्र्चघटिकं चित्तान्वितान्धारयेदेवा स्तम्भकरी सदा क्षितिजयं कुर्याद् भुवो धारणा।।

गोरक्षपद्धति 2.55, अर्द्धेन्दुप्रतिभं च कुन्दधवलं कण्ठेऽम्बुतत्त्वं स्थितं यत्पीयूषवकारबीजसहितं युक्तं सदा विष्णुना। प्राणं तत्र विलीय पत्र्चघटिकं चित्तान्वितं धारणेदेषा दुःसहकालकूटदहवी स्याद् वारुणी धारणा।।

गोरक्षपद्धति 2.56,यत्तालुस्थितमिन्द्रगोपसद्दशे तत्त्वं त्रिकोणानलं तेजो रेफयुतं प्रवालरुचिंर रुद्रेण सत्संगतम्। प्राणं तत्र विलीय पत्र्चघटिकं चित्तान्वितं धारयेदेषा वह्निजयं सदा वितनुते वैÜचानरी धारणा।।

गोरक्षपद्धति 2.57, यदिद्भन्नात्र्जनपुत्र्जसन्निभमिदं स्यूतं भूवोरन्तरे तत्त्वं वायुमयं यकारसहितं तत्रेÜचरो देवता। प्राणं तत्र विलीय पत्र्चघटिकं चित्तान्वितं धारयेदेषा खे गमनं करोति यमिनः स्याद्वायवी धारणा।।

घेरण्डसंहिता 3.63, धारणानि समासाद्य किं न सिद्धयति भूतले।।

गोरक्षपद्धति 2.58 आकाशं सुविशुद्धवारिसद्दशं यद्ब्रहारन्ध्रस्थितं तन्नादेन सदाशिवेन सहितं तत्त्वं हकारान्वितम्। प्राणं पत्र विलीय पत्र्चघटिकं चित्तान्वितं धारयेदषा मोक्षकपाटपाटनपटुः नभो धारणा।।

गोरक्षपद्धति 2.59, स्तम्भिनी द्राविणी चैव दाहनी भ्रामिणी तथा शोषिणी च भवत्येषा भूतानां पत्र्चधारणा।।

गोरक्षपद्धति 2.60, कर्मणा मनसा वाचा धारणा पत्र्चदुर्लभाः। विज्ञाय सततं योगी सर्वदुःखैः प्रमुच्यते।।

कुमार विकास, सिंह ऊधम (2019). गोरक्षपद्धति में धारणा विवेचन Environment Conservation Journal20(SE), 129-132.

https://doi.org/10.36953/ECJ.2019.SE02024

Received: 03.09.2019

Revised: 24.10.2019

Accepted: 19.11.2019

First Online: 13.12. 2019

:https://doi.org/10.36953/ECJ.2019.SE02024

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Publisher:  Action for Sustainable Efficacious Development and Awareness (ASEA)

Print : 0972-3099           

Online :2278-5124